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समझ / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
बगुला नें
बगुलनी सें कहलकै
हम्में नदी किनारोॅ पर छेलियै
वही समय ऐगो मुरदा बैह के
वैठां आय गेलै
देखैत-देखैत मछली सिनी मरेॅ लागलै
जीव-जंतु भी अकुलावेॅ लागलै
तबेॅ हम्में समझी गेलियै कि
मरला के बाद भी आदमी के देह में
जहर बैच गेल रहै।