समय का मौन सत्य / भावना सक्सैना
समय नहीं बदलता
बदलते हैं हम!
समय बहता है चुपचाप,
इस बहते समय में
सुन नहीं पाते हम
बदलाव की पदचाप।
श्वास लेता है समय
मूक दर्शक-सा
सदी दर सदी
वही सूरज, वही चाँद,
बदल जाती है बस
देखने की दृष्टि।
हम बदलते हैं
अपनी इच्छाओं में,
अपने डर में,
अपने फ़ैसलों की दिशा में,
और समय को दे दोष
बचते हैं अपने से ही।
हम बदलते हैं कि
हमारी दृष्टि, हमारी चाह,
हमारे प्रश्न, हमारे उत्तर,
हर पल बढ़ते हैं
भीतर, अज्ञात की ओर
एक नया अर्थ खोजते।
समय है निस्पंद साक्षी
देखता हर परिवर्तन
कहता कुछ नहीं।
रोता नहीं जब टूटते हैं,
जब खिलते हैं
तो हँसता भी नहीं।
उसके पास न घाव हैं,
न विजय की माला
वह है एक सूक्ष्म धारा
जिसमें हम उतरते हैं
और घबरा जाते हैं
अपने प्रतिबिंब से ही।
जो बीता समय नहीं था
हम थे, जो बदल गए।
जो आगे आएगा,
वह समय नहीं लाएगा
उसे आकार देंगे
हमारे अंतर्मन की छाया से।
क्योंकि सच पूछो तो
परिवर्तन हम हैं।
समय तो बस जल है
निष्प्रयास, निराकार, निःशब्द
जिसमें हर कोई
देखता है अपनी परछाईं ही।
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