समय केँ अकानैत / पंकज पराशर
अन्हार मे किछु नहि पड़ैत अछि देखार
चुपचाप
हम अकानैत छी
कूटभाषाक कइक टा शब्द घुरियाइत अछि चारू कात
हमर संपूर्ण गतिविधिक जेना क्यो रखैत अछि हिसाब
अकस्मात् बदलि जाइत अछि
हमर डायरी के लिखल शब्द
हमर भाषा के अर्थ
जतय छल कलमदान
ओतय एतेक रास शालिग्राम!
किछुए दिनक बाद गायब भ’ जाइत अछि
हमर अपूर्ण कविता कविता अपूर्ण लेख
मेहनति सँ ताकल किछु महत्वपूर्ण साक्ष्य
कइक दिन सँ दूपहर राति मे अबैत अछि आवाज
राम नाम सत्य है
राम नाम सत्य है
सोहरक धुन पर समदाओन गबैत
पिंडदानक मंत्र केँ सुभाषितानि कहैत
सामूहिक स्वर मे पसरैत अछि आवाज
शिकार...शिकार...शिकार....
अन्हार मे
मुँह झाँपल लोक सब
मध्यकालीन शैली मे आदिकालीन हथियार सँ
खंडित करैत अछि बुद्धक प्रतिमा
हम अकानैत छी दलमलित होइत अछि पृथ्वीक आत्मा
किसिम-किसिम के तांत्रिक सब छंद मे दैत अछि बिक्कट-बिक्कट गारि
आ चिकरैत अछि लोकतंत्र... लोकतंत्र
हम अकानैत छी
बहुत ध्यान सँ अकानैत छी
कतेक आश्चर्यक थिक ई बात जे एहि छंदहीन समय मे
छंदे मे बहराइत अछि ई सबटा आवाज!