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समाचार / दिनेश कुमार शुक्ल

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तुमने हमको खबर बनाकर
बेच दिया-
हम टुकड़ों-टुकड़ों में बँटकर
बिखर गये

तुम जो पढ़ लिखकर निकले हो
नये-नये स्कूलों से
वहाँ वस्तु के वास्तुशास्त्र के
प्रोफेसर ही रहते हैं
वो मार्केट के मरकट हैं
वो स्वांग बदलते रहते हैं
जिस दिसि बहे बयार पीठ वे
सदा उधर ही रखते हैं

लेकिन तुम तो अभी नये हो
तुमसे हमको आशा है
बची अभी तक
कहीं तुम्हारे पास
हमारी भाषा है
इसीलिए तुमसे कहता हूँ
तुम भी कहीं खबर में हो
भवसागर में साथ हमारे
तुम भी फँसे भँवर में हो
जो कुछ कहो चीख कर बोलो
जैसे दुखिया रोती है

तुम केवल कैमरा नहीं हो
तुम फोटू का हिस्सा हो
बेच रहे हो चुटुर-पुटुर जो
उससे क्या कह पाओगे
अगर सभी का दुख तुम बोलो
तभी सत्य गह पाओगे

प्रतिहिंसा में छिपी हुई
लाचारी को तुम पहचानो
दुखियों की आशंका समझो
उनके भय को पहचानो
उनके पास चलो मिल बैठो
आपस में सुख-दुख बाँटो

तभी तुम्हारी शिक्षा-दीक्षा
सार्थक होगी हे भाई
तुमको तो करनी थी भाई
हम लोगों की अगुवाई!