भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साँसों की डोर / उमेश चौहान
Kavita Kosh से
साँसों की डोर
सारे सन्दर्भो के बीच
सबसे निराला है
तुम्हारा संदर्भ
सारे संसर्गों के बीच
सबसे प्यारा है
तुम्हारा संसर्ग
सारी स्मृतियों के बीच
सबसे घनीभूत है
तम्हारी स्मृति
तुम्हारी चन्द्रिम अजास में
समा जाता है
खुले आकाश के
अनगिनत सितारां का उजाला
तुमसे मिलने की
आस ही तो बाँधे है
टूटकर बिखर जाने को आकुल
मेरे जीवन की साँसों की डोर को!