भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सांझ भई घर आवहु प्यारे / सूरदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सांझ भई घर आवहु प्यारे।
दौरत तहां चोट लगि जैहै खेलियौ होत सकारे॥
आपुहिं जा बांह गहि ल्या खेह रही लपटा।
सपट झारि तातो जल ला तेल परसि अन्हवा॥
सरस बसन तन पोंछि स्याम कौ भीतर ग लिवा।
सूर श्याम कछु करी बियारी पुनि राख्यौ पौढ़ा॥