भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साक्षरता / राग तेलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खरगोश ने कछुए से कहा
अब हम पढ़ना-लिखना सीख गए हैं
चलो पंचतंत्र फिर पढ़ते हैं

दोनों आगे बढ़े
खरगोश दौड़कर आगे गया और
अंतिम पृष्ठ पर लिखी
कछुए के जीत की इबारत बदल दी
खुद विजयी बन बैठा

कछुआ पहुंचा
खरगोश से कहा -
इसकी कोई जरूरत नहीं थी दोस्त !
अब तो मैं खुद
पंचतंत्र की कहानी लिखता हूं
तुमने मुझे लेखक बना दिया, धन्यवाद!

अब मेरी कहानी में
दो कछुए साथ चलते हैं

असमानता की दौड़ में
मेरा विश्वास नहीं।