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साक्षी / साँवरी / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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चन्दन नदी के उस पार
अभी भी खड़ा है
वह पीपल का वृक्ष
गवाही है
मेरे तुम्हारे मिलन का।

बहती है हवा
तो गाता है गीत
सुनाता है किस्सा यह
विरहिन का।

प्रियतम !
तुम भूल गये न
बचपन की वे बातें ?
चन्दन के सूखे बालू पर
बित्ती-बित्ती का वह खेल।
तुम्हें याद कहाँ से होगा
टिकोलों को तोड़ने
साँझ-साँझ तक ढेला चलाना।

एक साथ मिल कर निकलते थे
दीवाली दशहरा
और जेठौर का मेला
तुम्हें याद है भी या नहीं
मुझे याद है
कि माँ के दिए पैसे से
मैंने खरीदी थी
केतारी की एक डाँड़
जिसे छीन कर
तुम चूसने लगे थे
और मुझे बिलखते देख कर
तुम्हीं थे वह
जिसने खिलाया था मुझे
दाँतों से काट-काट कर
गोल-गोल गुल्ला बना कर

प्रियतम
दाँतों का वह सम्बन्ध
दो दिलों का वह अनुबन्ध
जो तोड़े
उसे मेरी सौगन्ध।