भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सागर मुद्रा - 9 / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
 क्षितिज जहाँ उद्भिज है
एक छाया-नाव
सरकती चली जाती है परिभाषा की रेखा-सी।
और फिर क्षिति और सागर मिल जाते हैं

शब्दों से परे एक नाद में :
संवेदन से परे एक संवाद में।
कहाँ, कौन किस से अलग है, जब कि मैं
पूछता हुआ भी, प्रश्न में खो जाता हूँ,
गगन की उदधि की चेतना की इकाई में?

मांटैरे (कैलिफ़ोर्निया), मई, 1969