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सीख / सत्यप्रकाश जोशी
Kavita Kosh से
आई सासरा री पाळ
झीणौ घूंघटौ निकाळ
उड़ता पल्ला नैं संभाळ,
जूण-मरण, सुख-दुःख रौ ऐकल आसरौ,
लाज रो लंगार आयौ सासरौ।
सरवर बौले सूवटा ज्यूं बागां बोलै मोर,
मुधरी बातां मोहणी, थै सीखी है गिणगोर,
थानैं हिरणी पाठ पढायौ,
पग रा घूघरा सिखायौ, बाई धीमै-धीमै चाल
सासरा री पाळ।
बाबल निरखै आंगणो कोई बीरा जोवै बाड़ी
जामण निरखै सूनी होती सखियां री फुलवाड़ी
थांनै सासूजी बुलायौ,
थांनै देवर लेवण आयौ,
थां बिन सूनी रातां, सेजां, सूनो जग जंजाळ
सासरा री पाळ।
दिन भर करजै चाकरी, आप नवाजै शीष
दूधां न्हाजै, पूतां फळजै, नीज लिजै आशीष
थांनै देराणी चिड़ासी,
थांनै जेठाणी लडासी,
नणदां करसी मसखरी, जद सुसरो देसी गाळ
सासरा री पाळ।