भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीमाओं से परे / सूरजपाल चौहान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अक्सर
सोचता हूँ
बहुत सोचता हूँ
बाल नोचता हूँ
खीझकर।

आदमी
हाँ, यह आदमी
बड़ा क्यों होता है?
सुना है
साइंस बहुत आगे है
क्यों नहीं होती—
ईजाद
कोई दवा
जो रहने दे
बच्चे को बच्चा
न बनने दे
आदमी बड़ा।

मेरा वायदा नहीं है कोई
दोस्त
लड़ेंगे तो फिर भी
मज़हब
जात और सीमाओं से परे
खिलौने और—
टाफियों के लिए।