भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुंदर सँवरी नार / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सहज सादगी सुंदर सँवरी नार ।
मोहक-मानस मंजुल-मुख शृंगार ।
सुमुखि सलोनी सजनी तू सौगात,
लहर लास्य ले अधर गुलाबी सार ।
तिरछी भौंहे कजरारी अनजान,
'मुग्धे' ! तेरे नयना लगें कटार ।
कंचन-काया मदमाती-मुस्कान,
माथे-बेंदी माँग-सजा गल-हार ।
नथ नकबेसर झूलत झुमका गाल,
कंगन-चूड़ी हिना-सजी अविकार ।
मनहर जस चंद्रिका लजाये रात,
मदन-मोहिनी गजब करे अभिसार ।
प्रेम नयन लगती जैसे नव छंद,
लगे चुलबुली दर्पण हस्त निहार ।