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सुण म्हारा इस्ट! (तीन) / राजेन्द्र जोशी
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सुण म्हारा इस्ट, म्हारी सुण!
म्हैं जाण सकूं
थूं मिनखां री भीड़ मांय
रगत रळ्योड़ो है
थारै खातर मिनख अर पसु
अेक जिस्या है
थूं बैरी अर दोस्तां नै भेळा राखै
थूं मांसाहारियां अर साकाहारियां नै
भेळी आसीस देवै।
कपूतां अर सपूतां री जमात किसी है
कांई है धरम
भूखै भेळो रळ
जीव री आसीस लै म्हारा इस्ट!
थारी निजर
हिंसा अर अहिंसा माथै
अेक जिसी लखावै
कीं अेक री हामळ भरै
अबै भरणी पड़सी
अबै बोलणो पड़सी
अेक कानी रळ
म्हारा इस्ट!