सुधिक हिलकोर / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
तनिक सुधिक हिलकोर
उठय नित मानस-सरमे जोर।
स्वर्गहुँसँ बढ़ि सुखमय बीतल
सौंसे शैशव काल,
हृदय लगाय सतत जे रखलनि
बुझितहुँ जग जंजाल,
जे सिंहासन हरलक अबितहिं निष्ठुर-वयस किशोर।
तनिक सुधिक हिलकोर।
हमर मनक आशा-आकांक्षा
जनिकर मनक हुलास,
हमरे सुखमे देखि मेटाइछ
जनिकर मनक पियास,
कतहु जाइ हम, चित्त जनिक नहि छोड़य हमर पछोड़।
तनिक सुधिक हिलकोर।
हरियर कंचन बनल रहय नित
जनिकर हृदयक चास,
कम्पित कय दै’छल अन्तरकेँ
हम दीर्घ निःश्वास
साओन भादव बनल नयनमे उमड़ि उठय घनघोर।
तनिक सुधिक हिलकोर।
भाव-भूमिपर एक वृक्ष हम
प्रिय सुरतरुक समान,
हमरेपर लटकल रहइत छल
निरवधि आकुल प्राण,
जनम-अवधि नहि नयन अघायल अनुखन भाव-विभोर।
तनिक सुधिक हिलकोर।
जनिक कामना-कालिन्दीमे
एक हमहि जलजात,
जीवन-उदयाचलक शिखरपर
मधुमय अरुणिम प्रात,
हमर यशोदा, हम खुरलुच्ची तनिके माखनचोर।
तनिक सुधिक हिलकोर।
कातरता आतुरता बढ़बय,
करय मनक दुख दून,
भाव अछैत, अभाव ककर ई
कयलक जीवन सून,
जनिक अर्चना हेतु अर्ध्य-जल ढारय लोचन नोर।
तनिक सुधिक हिलकोर।
गंगा ओ गायत्री सम जे
चरण हमर आराध्य,
जनिकर वत्सलता छाहरिमे
कय न सकल दूख बाध्य,
तनिके वन्दनमे रत रहु मन! दुपहर-सन्ध्या-भोर।
तनिक सुधिक हिलकोर।