भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुरंग में / उंगारेत्ती
Kavita Kosh से
|
एक आँख ताकती है
उस तारा-समूह में से
और एक हिमशीतल आशीष
छल आती है
निद्राचारी उकताहट के इस एक्वारियम में ।