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सूखा / एकांत श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
इस तरह मेला घूमना
हुआ इस बार
न बच्चे के लिए मिठाई
न घरवाली के लिए टिकुली-चूड़ी
न नाच न सर्कस
इस बार जेबों में
सिर्फ़ हाथ रहे
उसका खालीपन भरते
इस बार मेले में
पहुँचने की ललक से पहले पहुँच गई
लौटने की थकान
एक खाली कटोरे के सन्नाटे में
डूबती रही मेले की गूँज
सिर्फ़ सूखा टहलता रहा
इस बार मेले में।