भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूरज-५ / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरसात के लिए
धरती पर
हो रहे थे हवन
मिल रही थी अहूतियां
सूरज को
देवता होने के कारण
परन्तु
शर्मा रहा था सूरज
दिए बिना
लेने से !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"