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सूरज काका / शकुंतला कालरा
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आसमांन के रंगमंच पर-
सूरज काका नित आते हैं,
संग सुनहरी उषा को ले
हरदम ही वह मुस्कराते हैं।
कितने अच्छे कितने सुंदर
सारे जग से न्यारे-न्यारे,
ना वह तेरे ना हैं मेरे
वे सबके ही प्यारे-प्यारे।
किरणों का उपहार लिए वह
रोज सवेरे आ जाते हैं,
भेद-भाव ना करें किसी से,
समता हमको सिखलाते हैं।
अपनी चमक-दमक को लेकर
पश्चिम में जा छिप जाते हैं,
फिर पूरब से सुबह-सुबह ही
ऊषा किरण को ले आते हैं।