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सूरज की कविताएँ (प्यास) / सोमदत्त

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तमतमाया रहा होगा वह
अटाटूट मेहनत के बाद
आकाशगंगा के टपटप बम्बे के इर्द-गिर्द
भीड़-भाड़ देखकर
धरती हो तो धरती
यहाँ तो मिलना था हर मज़ूर को कंठ-भर पानी
प्यास-भर
तालू-भर
कि चंदोबे का तालू- जो दिप-दिप करता है धकड़ती नाड़ी-सा
उसे तो...
उसे तो...
उसे तो हक़ था प्यासे न मरने का