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से / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
मेरी आवाज वक्त के एहसास संजोए
एक-ना-एक दिन
आपके एनसाइक्लोपीडिया पर
उकेरी जाएगी
जेहन में उभर आएगी
और पढ़ी जाएगी
अपनी परिभाषा के साथ
आपके दिल-दिमाग पर दस्तक देगी
परिचितों-सा
याद दिलाएगी मेरी
आप खोलेंगे, आसरा देंगे मुझे ?
वीरानों में गूंजते-वापसे आते
अब थक गई है
निस्तेज हो गई है
आप पहचान लें तो रंगत आ जाएगी।