भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्कूल चले / हरेराम बाजपेयी 'आश'
Kavita Kosh से
खतम गर्मियाँ, खतम छुट्टियाँ,
संभालो बस्ता, उठाओ पट्टियाँ,
सुनो साथियों, सुनो सहेलियाँ,
गाते हुए चले स्कूल,
आओ फिर स्कूल चलें स्कूल॥1॥
दो महीने आराम किया,
जो चाहा सो काम किया,
खेले कूदे मौज मनाई,
अब सुस्ती को जाओ भूल,
आओ फिर चले स्कूल॥2॥
हरी, सफ़ेद लाल या नीली,
किसी कि छोटी, किसी कि ढीली,
ड्रेस सभी की प्यारी-प्यारी,
लगते जैसे, बगिया के फूल,
आओ फिर चले स्कूल॥3॥
पढ़ना–लिखना अच्छी बात,
सदा बोलना सच्ची बात,
उनको राह बताते चलना,
जो जाते है रास्ता भूल।
आओ फिर चले स्कूल॥4॥
गुरुजनों का माँ करों,
कभी न झूठी शान करों,
और न करना ऐसा काम,
जिससे से मिले किसी को शुल।
आओ फिर चलें स्कूल॥5॥