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स्त्रियों की लिखी पंक्तियाँ / नरेश चंद्रकर
Kavita Kosh से
एक स्त्री की छींक सुनाई दी थी
कल मुझे अपने भीतर
वह जुकाम से पीड़ित थी
नहाकर आई थी
आलू बघारे थे
कुछ ज्ञात नहीं
पर काम से निपटकर
कुछ पंक्तियाँ लिखकर वह सोई
स्त्रियों के कंठ में रुंधी असंख्य पंक्तियाँ हैं अभी भी
जो या तो नष्ट हो रही हैं
या लिखी जा रही हैं सिर्फ़ कागज़ों पर
कबाड़ हो जाने के लिए
कभी पढ़ी जाएंगी ये मलिन पंक्तियाँ
तो सुसाइड नोट लगेंगीं