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स्त्री / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
रसोई ...दफ्तर
स्कूल ...अस्पताल
कल-कारखाने
खेत-खलिहानों में
चहकती ...महकती और
धधकती
अँधेरे से रोशनी कभी....पतझर से बसंत निचोड़ती
चली आ रही है युगों से
सुगन्धित करती हुई दुनिया को।