भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्नान / काएसिन कुलिएव / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
वसन्ती भोर में
सूर्य की सुनहरी रश्मियों में
तुम नहा रही हो
अपने में मगन
सुनहले पाँव ...
मनोहर ग्रीवा — स्कन्ध
कितने प्यारे
कितने मनहर ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधीर सक्सेना