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स्मरण-वीथिका / विमलेश शर्मा
Kavita Kosh से
मन पंछी हुआ
तो आकाश की कामना हुई
ख़्वाबों के पंखों से
उड़ने की चाहना हुई
बारिशों में भीग
स्मृतियों में डूबता, तिरता, ठहरता
बिसूरता मन
तुम्हें महसूस करता रहा
हवाओं का हाथ थाम
घुँघरू बाँध, तुम्हारे साथ चलता,
सरसराता रहा
वीरान सड़क पर
उड़ना,डूबना, तैरना, सरसराना
जारी रहा सदियों तक
किसी यायावर-सा
और यूँ मैंने जाना कि
पंछी, आकाश, ख़्वाब , पंख, हवा
इस बावरे मन के ही रूपक हुए!