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स्मृतियों के आँगन में / किरण मिश्रा
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स्मृतियों के आँगन में
मन की धूप में नहाए तुम खड़े हो
वो भीना चन्दन वन
और तुम्हारा साथ
मेरे निस्सार जीवन में हुआ तुम्हारा वास
धूसर नीरवता के उस पल में
जब-जब तुम आ जाते
अरबों स्वप्न सकार हो जाते
मिल जाते फिर प्राण
मन झुलसी मुरझाई दोपहरी
तुम बनते बरसात