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स्वर्ण-किरण / एम० के० मधु
Kavita Kosh से
पंचवटी को रौंदता
कुलाचें भरता
वह सोने का हिरण
मारीच की आत्मा लिए
सपने बिखेरता
वह स्वर्ण-किरण
ॠषियों का वन
मिट्टी का कण
फूल-पत्तों का मन
चांदनी-चमन
सब रोक रहे हैं
उसके चंचल चरण
किन्तु उसके छलिया नयन
बेच रहे धरती
और नीला गगन
वह सोने का हिरण
सपनों को बेचता
वह स्वर्ण-किरण।