भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्‍मृति-पिता / वीरेन डंगवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


एक शून्‍य की परछाईं के भीतर
घूमता है एक और शून्‍य
पहिये की तरह
मगर कहीं न जाता हुआ

फिरकी के भीतर घूमती
एक और फिरकी
शैशव के किसी मेले की
00