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हमरा लेॅ दोनों बराबरे / श्रीस्नेही
Kavita Kosh से
छक-छक दुपहरिया कि जाड़ा के रात।
हमरा लेॅ दोनों बराबरे बात॥
झरखै र्हे देह तखनी काँपै छेॅ मऽन एखनी।
कोस्सा के रोटी ठियाँ कुदरुम के चटनी॥
चूल्हा-निकाली केॅ ताबा पेॅ लात।
हमरा लेॅ दोनों बराबरे बात॥
नैर्हा में रोपनी आरो मुँहऽ पेॅ ताला।
ससुरारी में कटनी आरो कोबऽ पैला॥
कमैतें-कमैतें निकल लऽ दाँत।
हमरा लेॅ दोनों बराबरे बात॥
छेलाँ जे वहेॅ छी भुटका जोलाहा।
केनाकेॅ करबऽ ओम नमो स्वाहा॥
कागज के गुड्डी उड़ाय लेल्हेॅ जात।
हमरा लेॅ दोनों बराबरे बात।
चन्नन पिन्हैलेॅ पर मन तेॅ जगैल्हेॅ नै।
पक्का के घऽर देॅ पक्का बतैल्हेॅ नै॥
यहिल होतऽ नै भाग्य के परात।
हमरा लेॅ दोनों बराबरे बात॥