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हमरोॅ माय / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
हमरोॅ माय
लोर छेलै हमरोॅ माय
जबेॅ देखै छियै हम्में काहीं लोर
याद आवै छै हमरा
हमरोॅ माय
ऊ लोरे छेलै एकदम
गरम
तरल
कोमल
पारदर्शी
केकरोॅ भी
छुबी लै वाला
सींचलोॅ गेलोॅ छियै
वहेॅ लोरोॅ सें
कतना दुखोॅ में डूबली छेलै हमरोॅ माय
अपनोॅ दुख
अपनोॅ पड़ोस केॅ दुख
दुखोॅ केॅ मूरत होय गेली छेलै
हमरोॅ माय
हम्में कतनां ऊसर छियै
परती-परांट
कुछ्छु नै उगेॅ पारलै हमरा में
है रंग के बढ़िया सें सींचला के वादोॅ भी
ई एक बड़ोॅ दुख छेलै
हमरोॅ माय केॅ।