भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारे दोनों एक धनी / बिन्दु जी
Kavita Kosh से
हमारे दोनों एक धनी।
इत गोपाल श्याम नटनागर, उत रघुवंश मणि॥
इत था नन्द यशोदा आंगन कक्रीड़ा करत धनी।
उत पालने झुलावत दशरथ कौशल्या जननी॥
इत मुरली सिर मोर मुकुट पर कटि काटे कछनी।
उतकर सिरधुन क्रीट मुकुट की शोभा सुघर बनी॥
इत गोपाल के प्रेम रस भरे गोरस में देह सनी।
उत राजत शरीर पर दिनन की दृग ‘बिन्दु’ कनी॥