हमारे नाम / रूपम मिश्र
वे ख़ुद को लोरी गाकर सुलाती थीं
और ख़ुद ही प्रभाती गाकर जग जातीं थीं
वे जाने कब जन्मी थीं और कब ब्याही थीं, तिथियाँ नहीं जानतीं
कभी ज़रूरत भी न पड़ी
लेकिन उस दिन बैंक पर मुझे मिल गईं
अपना पासबुक लेकर
नाम बुलाया गया, उठीं ही नहीं
दो बार — तीन बार
अबकी कैशियर ने खीजकर नाम लिया
रामरती — पत्नी हीरालाल
पति का नाम सुनकर उन्हें लगा उनको बुलाया गया है
पर अपने नाम को लेकर वह आश्वस्त न थीं
बैंक वाले बार - बार डाँट रहे थे
आपका यही नाम है न ?
संशय से परेशान होकर कहतीं — सौ बिस्सा यही तो है
वहीं बेंच पर माथे पर पल्ला डाले मैं भी बैठी थी
मैं जो उनकी जाति की हूँ,
मैं जो नाम के इतिहास को कुछ-कुछ जानती हूँ, वे पासबुक लेकर मेरे पास आ गई हैं
बहुत संकोच से कह रही हैं — दुलहिन ! इसमें मेरा नाम लिखा है क्या ?
मैंने कहा — बताइए, अम्मा, आपका नाम क्या है !
उन्होंने दो-तीन नाम लिए सोचते हुए कि
इसमें से ही कोई एक नाम मेरा है,
बाक़ी मेरी बहनों के नाम हैं ।
वे इतनी सहजता से अपने ही नाम की पड़ताल कर रही थीं कि करुणा आवेग बनकर मेरे कण्ठ में रुक गई
अपने अस्तित्व को लेकर इतनी उदासीनता क्या जन्मजात है यहाँ
या सामाजिक संरचना की बलिहारी है
मैंने कहा — याद कीजिए ठीक - ठीक। आपका क्या नाम है ?
वे असहाय सी फिर वही बात दुहरातीं । कभी मेरी ओर कभी बैंक वालों की ओर देखतीं ।
सई, गोमती, वरुणा, वसुही नदियों के कछार की बलुअरा माटी क्या मैयभा होती है
हमारे गांवों को अँकवार देकर बहती नदियो ! क्या तुम भी भूल जाती हो हमारे नाम ।