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हरहमेश दूसरे / नवीन सागर

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एक जीवन हम जीते हैं
दूसरा आकांक्षा का जीवन है

एक स्‍त्री जो होती है जीवन में
एक और स्‍त्री का निर्माण
भीतर करती है
एक दोस्‍त होता है
जिससे कोई कभी मिला नहीं होता
एक और चॉंद होता है
किसी और आसमान में
हम होते हैं
जहॉं कहीं से दूर हरहमेश दूसरे
हम जो हैं उसके अलावा
कुछ भी होने का सपना हमारा
बहुत पुराना है

चींटियां और चट्टानें क्‍या हमसे निरपेक्ष हैं?
वे कुछ नहीं कहतीं हमारे बारे में
ईश्‍वर भी नहीं कहता कुछ
हम सबके बारे में कहते हैं
हमारे कहने से
जितना अलग है सब कुछ
उतना ही अलग एक संसार
हमारी आकांक्षा का है

वहां जाने के लिए
वहां से दूर होते जाने की कथा है.