भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर आँसू / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर आँसू मोती है मेरे लिए तुम्हारा,
हर मुसकान रजत की रेखा-सी उज्ज्वल है
औ’ सुहाग-सिन्दूर अँधेरे मेरे जीवन
के पथ के दीपक की स्वर्णिम ज्योति अचल है॥

1.1.59