हवाइ यात्राक बाद-1 / दीप नारायण
तड़ाक तड़ाक तड़ाक
कय बेर लागल रहैक
हमरा गाल पर तबड़ाक
चिचिएनाइ भ' गेल रहैक सद्ह बन्न
पिता केँ बिहुँसल रहनि छाती
फाटल रहनि कुहेस
किनि नहि सकल रहथि
दसमीक मेला मे
हमरा लेल हेलीकॉप्टर
मायक पयर मे फाटल रहै बेमाय
चिकठ-मोइल नुआ पहिर
काटैत रहथि धान आ
कतेक पसही केँ हम
क' देने रहियैक राइ-छिट्टी
किरताल भेल
एकास मे उड़ैत देखि
हेलीकॉप्टर केँ
पितियौतक छोड़ल
ओहि फोटो बला किताब मे
अ सँ अमरूद, आ सँ आम पढ़ैत अकसरहा
ठमकि जाइत छल हमर औँरी
ह सँ हवाईजहाज पर
फेर क्ष, त्र आ ज्ञ धरि
कहाँ ससरि पबैत छलहुँ हम
जखन प्राइमरी स्कूलक
पहिल कक्षाक अंतिम पाँति मे बैसल
कागज केँ बना हवाइ जहाज
करैत रही अकाश मे उड़बाक तैयारी
कि शर्माजी सर हाथ सँ छीनि हमर सपना
फारि देने रहथि टुकड़ी-टुकड़ी
डेन पकड़ि बैसा देने रहथि आगा आ
चेतबैत बड़ी जोर सँ खिंचने रहथिन कान
ठिके, पहिल बेर भीतर सँ कानल रहैक मोन।
भीड़ केँ डरे
नहि जाय देने रहथि पिता
कक्काक संगे
खाजेडीह कॉलेजक फिल्ड पर
देखय लेल हेलिकॉप्टर
जे आएल रहथि कोनो नेता
चुनावी दौरा मे
ई सब गप्प आबि रहल अछि
एकाएकी माथ मे
हवाइ जहाजक पहिल गगन विहार मे
खिड़की सँ दुनियाँ देखैत काल।