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हवाइ यात्राक बाद-2 / दीप नारायण
Kavita Kosh से
पिताक आँगुर पकड़ि
धन खेतीक मछारि पर चलैत
एकटा बेदरा
अकासक छाती चिरैत
गड़गड़ाइत हवाइ जहाज केँ देख
हाथ उठा-उठा देखबैत आ
खुश होइत खुब-खुब बहुत देर धरि
किन साइत, एहु दुआरे
कि काल्हि
एहि पर चढ़ब
हवाक संग लड़ब
होयत ओकरे संग
पिताक नहि छन्हि फुरसति मुदा,
सोचबाक लेल हवाइ जहाज
ओ खहरि जाइत अछि
देखबाक लेल धानक खाउर
जकरा रोपबाक छैक
एहि कोला सँ उखारि कोनो आन कोला मे
निकलि जाइत अछि हवाइ जहाज
माथक सिमान सँ बहुत दूर
धुर पर चढ़ि
अकास केँ निघारति ओ बेदरा
सोंचैत छैक उड़ान आ
हेरा' जाइत छैक भविष्यक सपना मे।