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हवा / फुलवारी / रंजना वर्मा

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जब जाड़े की ऋतु आती।
बरखा बूंदे बरसाती॥
करती सब को ट्रस्ट हवा।
फिरती है अलमस्त हवा॥

गर्मी में थक जाती है।
कभी-कभी रुक जाती है॥
उमस बढ़ाती व्यस्त हवा।
कर देती तब त्रस्त हवा॥