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हाइकु / कृष्णा वर्मा / कविता भट्ट

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1
पूनो की रात
अम्बर से झरती
रस की धार।

पूर्णिमै रात
आगास बिटि झड़ि
रसै कि धार
2
भिनसार में
टूटीं स्वप्न की साँसें
पलकें खुलीं।

बिन्सरी ईँ माँ
टुटिन स्वीणों साँस
चेप्पु उघ्ड़ियाँ
3
काँपें हवाएँ
छुएँ जो शीत-भीगी
नंगी शिलाएँ।

कौंपिन हवा
छूएंन ठंडी-भिजीं
नांगा जु पौड़
4
साँझ ढली तो
स्वर्ण धूप के पन्ने
हुए गुलाबी।

ब्याखुन ढळि
सोना घाम क पन्ना
ह्वेन गुलाबि
5
सिंदूरी साँझ
गगन है लोहित
लेटी है धूप।

सिंदुरी संध्या
आगास च यु लाल
पड्यू च घाम
6
घुली चाँदनी
आँगन-कसोरे में
महके प्यार।

मिलि जुनाळि
चौका कट्वरा माँ
मैकणि माया
7
सर्द चाँदनी
उलीचे रात भर
भीगे चुम्बन।

ठण्डी जुनाळि
उल्चणि रातभर
भिज्यीं च भुक्की
8
नदी-जल में
नहा के हवाएँ दें
सूर्य को अर्घ्य।

गंगा जल माँ
नहे हवा देन्दिन
सुर्ज तैं अर्घ्य
9
पेड़ जो कटे
बने कहाँ घोंसला
टूटा हौसला।

डाळा कटेन
बौणुन कख घोल
टुटि हौंसला
10
कैसा उत्थान?
छीनते परिंदों के
नीड़ व गान।
कन्नू उत्तन
लुछणा पग्छियों का
घोल-र गीत
11
शुष्क हुए हैं
बादलों के अधर
वन लापता।

सुक्खा हुयाँन
बादळु का ओंट बि
बौंण हरचि
12
प्रेम-अगन
दहके टेसू मन
महके वन।

मायै कि आग
सुल्गिन टेसू मन
मैक्यन बौंण
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