हाइकु / जेन्नी शबनम / कविता भट्ट
1
पाँव है ज़ख़्मी
राह में फैले काँटे
मैं जाऊँ कहाँ!
खुट्टा च घैल
रस्तों माँ फैल्याँ काँडा
कख जौलू मी
2
लौटता कहाँ
मेरा प्रवासी मन
न कोई घर!
कख लौटलू
म्यारू प्रवासी मन
क्वी घौर नी
3
मेरी गौरैया
चीं चीं-चीं चीं बोल री,
मन है सूना!-
म्यारी घिंडुड़ी
चीं चीं-चीं-चीं बोल दौं
मन च सुन्न
4
हवन हुई
बादलों तक गई
ज़िन्दगी धुँआ!
हवन ह्वे गे
बादळ तक ग्याई
जिंदगी धुआँ
5
ठिठके खेत
कर जोड़ पुकारें
बरसो मेघ!
पुंगड़ा रुक्याँ
हत्थ जोड़ी पुकाना
बरखा मेघ
6
रूठा है सूर्य
कैकेयी-सा, जा बैठा
कोप-भवन!
रुसायूँ सुर्ज
कैकई सी बैठी गे
कोप भवन !
7
प्रेम की अग्नि
ऊँच-नीच न देखे
मन में जले!
माया की आग
बड़ू-छोटू नी देखू
मन माँ जगीं
8
प्रेम बंधन
न रस्सी न साँकल
पर अटूट!
प्रेम-बन्धन
न रस्सी ना साँगुळ
पर अटूट!
9
बावरी चिड़ी
गैरों में वह ढूँढती
अपनापन!
बौल्या प्वथली
परायौं माँ ख़्वजदी
अपणयूत
10
कोई न आया
पसरा है सन्नाटा
मन अकेला!
क्वी बी नी आई
सन्न ह्वे सरी मानैं
मन यकुली
11
खत है आया
सन्नाटे के नाम से,
चुप्पी ने भेजा!
चिठ्ठी च आँयीं
सन्नाटा नौं से बल
चुप्पै च भेजीं
12
दुःख अतिथि
जाने की नहीं तिथि
बड़ा बेहया!
खौरी च पौंणू
जाणै बी नी क्वी तिथि
भौत उयाद
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