भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकु 14 / लक्ष्मीनारायण रंगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कठै सूं आयो
कठै जासी, जीवण
पाणी रो रेलो ?


उतार परा
देव्यां रा गाभा, सजै
सुरपणखां


नचा सकै है
जागी कठपुतली
नचाणियैं नैं