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हाइकु 14 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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कठै सूं आयो
कठै जासी, जीवण
पाणी रो रेलो ?
उतार परा
देव्यां रा गाभा, सजै
सुरपणखां
नचा सकै है
जागी कठपुतली
नचाणियैं नैं