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हाइकु 176 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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परदेसी रे!
नीं रैयी थारी आस
निसरै सांस
धरती गोळ
मिनख बांट नाखी
दिसावां मांय
रात-अंधारै
उल्लू करसी राज
जंगळ राज