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हाइकु 94 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
अकेले प्रभु
रच्यो आखो जगत
थूमं की कीं रच
समै रो रूप
तिसळणो कटोरो
सावळ झाल
इण सड़क
घणी बार आयो-गयो
फेरूं अंजाण!