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हाथी / मुकेश मानस
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हाथी आए बस्ती में
नहीं थे कोई मस्ती में
बच्चे लगे बजाने ताली
हाथ बड़ों के नहीं थे खाली
ऊपर कसे हुए थे आसन
थे सवार के वो सिंहासन
असवार चैंन से सोए थे
सुखद स्वप्न में खोए थे
पत्ते थे कुछ पड़े हुए
हरे-हरे, कुछ सड़े हुए
हाथी कुछ ना खाते थे
बस तकते ही जाते थे
इक दूजे के पास थे
हाथी बहुत उदास थे
इतने थके हुए थे वो
जैसे मरे हुए थे वो
रचनाकाल:1988