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हाथी बनाम घोड़े / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
सिर्फ़ राजा पुरु के हाथियों ने
नहीं रौंदी थी अपनी सेना
हाथियों की फ़ितरत है कि
वे रौंद डालते हैं खड़ी फ़सल
और तो और वे छोड़ते नहीं
गन्ने तक,
जो बहुत प्रिय हैं उन्हें
और उनके शावकों को ।
अपनी पर आ जाएँ
तो हाथ भर लिहाज़ भी नही करते हाथी
तहस-नहस कर डालते हैं वे अरण्य और वनग्राम ।
पलों में अजूबा रच डालते हैं
वे महानगरों में विराट ।
मिल जाएँ दुनिया भर के हाथी
तो कर डालें समूची पृथ्वी को कंपायमान
इन दिनो अकारण नहीं डोल रही है धरती
गज़ब का शोर है दिशाओं के दसों कानों में
इतिहास में यूँ ही नहीं
हाथियों पर भारी पड़ते हैं घोड़े ।