भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाथ-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत लोग थे वहीं
सब के सब
समझदार थे
धाए हुए भी थे
उनके बीच
किसी के हाथ
आसमान की ओर उठे
लोगों ने समझा
मांगेगा
या
मारेगा
कोई न था वहां
जो समझता
हाथ
कभी-कभी
दुआ में भी
उठते हैं.