हारे हुए सिपाही का वक्तव्य / रणजीत
मेरे दोस्तो !
मेरे रफ़ीको !
मेरी बग़ावत के बाजू अगर टूट रहे हैं
तो इन्हें टूटने दो
शायद अब कभी मैं
ज़ुल्म के खि़लाफ़ अपने हथियार नहीं उठा पाऊँगा
लेकिन देखना
कहीं मेरे बच्चों के नन्हें बाजुओं पर कोई चोट न आए
क्योंकि कल
नए सूरज को उन्हीं के कन्धों पर से उग कर आना है -
मेरे बाजू अगर टूट रहे हैं तो इन्हें टूटने दो !
मेरे दोस्तो !
मेरे साथियो !
मेरे विश्वास के पाँव अगर लड़खड़ा रहे हैं
तो इन्हें लड़खड़ाने दो
शायद अब कभी इनकी धमनियों में वह गर्म ख़ून नहीं उमड़ेगा
लेकिन ख़याल रखना
कहीं दुश्मन मेरे बच्चों के मासूम पाँवों को
लोहे के तंग जूतों से न जकड़ दें
क्योंकि कल
उन्हीं पाँवों के बल पर इतिहास को आगे बढ़ना है -
मेरे दोस्तो !
मेरे रफ़ीको !
मेरे स्वाभिमान की कमर अगर झुक रही है
तो इसे झुकने दो
शायद अब कभी मैं
दुश्मन के सामने सीना तान कर खड़ा नहीं हो सकूँगा
लेकिन होशियार !
कहीं वे लोग मेरे बच्चों के सिरों पर मुर्दा परम्पराओं का बोझ लाद
उन्हें बौने न बना दें
क्योंकि कल
इन्सानियत उन्हीं के जिस्मों में अपनी तस्वीर देखेगी -
मेरी कमर अगर झुक रहीं है तो इसे झुकने दो !
मेरे दोस्तो !
मेरे साथियो !
मेरे विवेक की आँखें अगर बारूद के ज़हरीले धुएँ से धुँधला रही हैं
तो इन्हें धुँधलाने दो
शायद अब इनके ओठों पर कभी
रोशनी की प्यास नहीं तड़पेगी
मगर सावधान !
कहीं मेरे बच्चों की भोली आंखों पर ये लोग
अपने रंगीन चश्मे न चढ़ा दें
क्योंकि कल
ज़माने का कारवाँ उन्हीं की आँखों से अपनी राह ढ़ूँढेगा -
मेरी आँखें अगर धुँधला रही हैं तो इन्हें धुँधलाने दो !
मेरे दोस्तो ! मेरे साथियो !! मेरे रफ़ीको !!!