भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिंसा परसाद / जीत नराइन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब जब घटका लगल, तब
खियाल बढ़ल कि मरे से पहिले
एसे भेंट कर लेई, ओसे बोलचाल

अपन लत्ति अपने कटलिस से कट गैल
अपन सोड़ में जोर ना, पत्तन
कुम्हाला गैलें

बादर गरजे मोत के अखाड़ा में, तु अकेल कुस्तिबाज
तौन पे खेल हारल है
मुरदा बोले मुस्कियाए

बादल ढल गैल, बरखा ना आइल प्यास तेजान, प्यार ललान
लहास गिरल जिभ झूरे रैह गैल
जा रे जीवन, जा-रे-जा।