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हिस्से में / मिथिलेश कुमार राय

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इन्हें रंग धूप ने दिया है
और गंध पसीने से मिली है इन्हें

यूं तो धूप ने चाहा था
सबको रंग देना अपनी रंग में
इच्छा थी पसीने की भी
डूबो डालने की अपनी गंध में सबको
मगर सब ये नहीं थे

कुछ ने धूप को देखा भी नहीं
पसीने को भी नहीं पूछा कुछनेे
शेष सारे निकल गये खेतों में
जहां धूप फसल पका रही थी
बाट जोह रही थी पसीना