हुंकार / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
माँ! न हो मुख म्लान हम सब जग पड़े हैं।
सिर हथेली पर लिए डट कर खड़े हैं।।
तन सबल फ़ौलाद से सीने जड़े हैं।
हम अडिग ध्रुव आन पर अपनी अड़े हैं।।
शक्ति किसमें है कि तेरी ओर ताके।
शत्रु को हम आज छोडे़ंगे मिटा के।।
जो उठेगी आँख तुझ पर फ़ोड़ देंगे।
जो बढ़ेंगे हाथ उनको तोड़ देंगे।।
बढ रहा प्रतिपल हृदय में जोश दूना।
वीरता का विश्व देखेगा नमूना।।
कौन यौद्धा है ज़माना जान लेगा।
सिंह और सियार को पहचान लेगा।।
फिर सुदर्शन चक्र केशव ने घुमाया।
पार्थ ने गाण्डीव अपना फिर उठाया।।
राम फिर निज चाप पर चिल्ला चढ़ाते।
बाण फिर तूणीर में हैं कसमसाते।।
तन चुकी फिर भीम के कर में गदा है।
हर तरफ जयघोष की गूँजी सदा है।।
पड़ रही पद चाप चेतक की सुनाई।
कर प्रतिज्ञा तेग़ राणा ने उठाई।।
फिर शिवाजी ने भृकुटि है आज तानी।
म्यान से बाहर कढ़ी फिर से भवानी।।
फिर प्रलय का दृश्य होगा आज भू पर।
आज रणचण्डी पिएगी रक्त जी भर।।
आज दुश्मन की विफल हर चाल होगी।
आज शोणित से धरा फिर लाल होगी।।
हम बढ़ेंगे समर में भूचाल बन कर।
टूट अरिदल पर पडेंगे काल बन कर।।
सामने हों टैंक या तोपें अड़ी हों।
गोलियों की भी लगी अविरल झड़ी हों।।
बीच पथ में हम नहीं हर्गिज़ रूकेंगे।
कट भले जाएँ न सिर लेकिन झुकेंगे।।
हैं सदा साक्षी हिमालय और गंगा।
आसमां पर आज फहरेगा तिरंगा।।
अब न फिर स्वाधीनता संत्रस्त होगी।
शक्ति सारी दानवों की ध्वस्त होगी।।
चाक हम होने न तेरा चीर देंगे।
प्राण दे देंगे न पर कश्मीर देंगे।।
आज भ्रम विद्रोहियों का दूर होगा।
दर्प सारा दम्भियों का चूर होगा।।
आँच अपनी आन पर आने न देंगे।
शान हम तेरी कभी जाने न देंगे।।
रक्त है जब तक रंग़ों में दम में दम है।
माँ! न चूकेंगे कभी तेरी क़सम है।।