भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हुजूम / सजीव सारथी
Kavita Kosh से
स्कूल से लौटते बच्चे,
कांधों पर लादे,
ईसा का सलीब-
भारी भरकम बस्ते,
छुट्टी के बाद मगर,
बोझ से नही लगते,
खाने का टिफिन,
पानी की बोटल,
खाली और हल्के,
पटरी पर चलते,
चीखते और शोर करते,
एक के बाद एक,
बेफिक्र हँसते -गाते,
किसी नयी पिक्चर का गीत,
सुर से सुर मिलाते,
हाथ में बल्ला और बॉल थामे,
मैच की योजना बनाते,
या किसी टीचर की नक़ल बनते,
जाने क्या क्या किस्से सुनाते,
स्कूल से लौटते बच्चे,
पल भर में गुजर जाता है,
आँखों के आगे से,
पूरा का पूरा हुजूम,
जिंदगी में गुजरे किसी,
सुनहरे दौर की तरह,
उनके ठहाके मगर,
दूर तक सुनायी देते हैं...